महाराष्ट्र के गांव में विधवा होने की रस्मों पर रोक, महिला की नहीं तोड़ी जाएगी चूड़ियां, सिंदूर भी नहीं पोछा जाएगा

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Widow rituals banned in Maharashtra village
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Mumbai: महाराष्ट्र में ग्राम पंचायतों ने एक अनोखा फैसला लिया है. जिसके बाद से पूरे क्षेत्र में महिलाएं खुश है. ग्राम पंचायतों फैसले का स्वागत किया है. कोल्हापुर जिले के दो गांवों द्वारा सदियों पुराने प्रतिगामी अनुष्ठानों पर प्रतिबंध लगाने वाला एक प्रस्ताव पारित किया गया है, जो विधवाओं को बहिष्कृत करने के लिए महिलाओं के लिए राज्य की नीति का हिस्सा बनने के लिए तैयार है. बताया जा रहा है कि महाराष्ट्र दिवस (1 मई) के अवसर पर शिरोल तहसील के हेरवाड़ गांव और कोल्हापुर जिले की हटकनगले तहसील में ऐतिहासिक मानगांव ने ग्राम सभाओं में प्रस्ताव पारित किया.

वहीं, ग्राम पंचायतों के फैसले में कहा गया है कि अब विधवा की चूड़ियां तोड़ने, उसके मंगलसूत्र, पैर की अंगुली को हटाने और उसके बाद सदियों पुराने परंपरा के तहत उसका सिंदूर को पोंछने जैसे रीति-रिवाजों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) ने अब राज्य में ग्राम सभाओं को हेरवाड़ गांव के उदाहरण का पालन करने के लिए कहा है. ग्रामीण विकास और श्रम मंत्री हसन मुश्रीफ ने कहा है कि विज्ञान के इस युग में पुरानी और “अप्रचलित प्रथाओं” को जारी नहीं रखना चाहिए. ग्रामीण विकास और श्रम मंत्री हसन मुश्रीफ के हवाले से जारी बयान में कहा गया है, कोल्हापुर में हेरवाड़ ग्राम पंचायत ने इस संबंध में एक प्रस्ताव पारित करके विधवा होने की रस्मों पर प्रतिबंध लगा दिया है. अब अन्य ग्राम पंचायतों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है.

ग्रामीण विकास और श्रम मंत्री हसन मुश्रीफ ने आगे कहा कि आज देश बदल चुका है और ऐसे में पुरानी कुरीतियों की कोई जगह नहीं होनी चाहिए. देश के अन्य राज्यों को भी हेरवाड़ ग्राम पंचायत की तरह प्रस्ताव पारित करना चाहिए. इसी के साथ सभी ग्राम पंचायतों को अपने पति को खोने वाली महिलाओं की गरिमा को बनाए रखने के लिए पहल करने के लिए भी कहा है. वहीं, ग्राम पंचायत के प्रस्ताव में विधवाओं को सामाजिक और धार्मिक समारोहों में शामिल होने से रोकने सहित सदियों पुराने रीति-रिवाजों को दूर करने की कोशिश की गई है. प्रस्ताव में साफ कहा गया है कि, इस तरह की प्रतिगामी प्रथाएं मानवाधिकारों का उल्लंघन करती हैं और संविधान द्वारा महिलाओं को दी गई गरिमा को ठेस पहुंचाती हैं और इस तरह के रीति-रिवाजों को मिटाना वक्त की जरूरत है.

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