New Delhi :देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हर जगह तिरंगे की धूम है. वहीं स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर सियाचीन से एक बड़ी खबर सामने आई है. ऑपरेशन मेघदूत के बीच 38 साल पहले हुई एक झड़प के दौरान बर्फीली चट्टान की चपेट में आकर लापता हुए 19 कुमाऊं रेजीमेंट के एक जवान का लाश सियाचिन के पुराने बंकर में मिला है. दुनिया की सबसे ऊंची रणभूमि सियाचिन में जवान चंद्रशेखर हर्बोला का शव मिलने की जानकारी रविवार को कुमाऊं रेजीमेंट रानीखेत के सैनिक ग्रुप केंद्र की ओर से परिजनों को दी गई. हर्बोला के साथ एक और सैनिक का लाश मिलने की सूचना है.
दरअसल, 29 मई 1984 को सियाचिन में ऑपरेशन मेघदूत के दौरान हर्बोला की जान चली गई थी. बर्फीले तूफान में उस बीच 19 जवान दब गए थे, जिनमें से 14 के लाश बरामद कर लिए गए थे. लेकिन 5 जवानों के लाश नहीं मिल पाए थे. इसके बाद सेना ने पत्र के जरिए घरवालों को चंद्रशेखर के शहीद होने की जानकारी दी थी. उसके बाद परिवार वालों ने बिना लाश के चंद्रशेखर हर्बोला का अंतिम क्रिया-कर्म पहाड़ी रीति रिवाज के हिसाब से कर दिया था. बताया जा रहा है कि लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला 19 कुमाऊ रेजीमेंट का पार्थिव शरीर सोमवार या मंगलवार को उनके घर हल्द्वानी पहुंचेगा.
वहीं, साल 1984 में शांति देवी को सियाचिन में पाकिस्तानी सैनिकों के साथ झड़प के दौरान पति के लापता होने की जानकारी मिली थी, जिसके बाद वह पिछले 38 साल से उनके पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन करने का इंतजार कर रही थीं. उन्होंने बताया कि शादी के 9 साल बाद उनके पति लापता हो गए थे और उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 28 साल थी, जबकि उनकी बड़ी बेटी 4 साल व दूसरी बेटी डेढ़ साल की थी. हालांकि, शांति देवी ने कहा कि उन्होंने जीवन की तमाम बाधाओं और चुनौतियों का सामना करते हुए बच्चों को एक शहीद की बहादुर पत्नी के रूप में पाला. बता दें कि ऑपरेशन मेघदूत में जवानों के शौर्य और अदम्य साहस को आज भी लोग भूले नहीं भूलाते. दुनिया के सबसे दुर्गम युद्धस्थल पर भारतीय जवानों के पराक्रम और शौर्य की वीर गाथा आज भी लोगों ने जेहन में जिंदा है. भारतीय सेना ने 13 अप्रैल 1984 को सियाचिन ग्लेशियर में आपरेशन मेघदूत लॉन्च किया था.
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