New Delhi: देश भर में बढ़ती गरमी के बीच ऊर्जा संकट गहरा रहा है. देश के महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पंजाब समेत करीब 10 राज्यों में बिजली की भारी संकट पैदा हो गया है. आलम यह कि कई राज्यों के पास बिजली उत्पादक संयंत्रों के पास कोयले की कमी भी देखने को मिल रहा है. हालत यह है कि महाराष्ट्र और पंजाब समेत कई राज्यों के बिजली उत्पादक संयंत्रों के पास एक हफ्ते से भी कम दिनों तक बिजली बनाने के लिए कोयले का भंडार बचा है. ऐसी हालत में अगर इन बिजली उत्पादक संयंत्रों को जल्द ही कोयले की आपूर्ति नहीं की गई, तो देश के कई राज्यों में ब्लैक आउट (Black Out) घोषित हो सकता है.
वहीं, महाराष्ट्र के ऊर्जामंत्री ने बयान जारी कर राज्य के कोयला स्टॉक के बारे में चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए हैं. महाराष्ट्र के ऊर्जा मंत्री नितिन राऊत ने कहा कि महाराष्ट्र में कुछ प्लांट में डेढ़ दिन, कुछ प्लांट में 3 दिन तो कुछ प्लांट में 6 दिन का कोयला ही बचा है. हालांकि उन्होंने इस बीच दावा किया कि बिजली संकट को दूर करने के लिए महाराष्ट्र सरकार काम कर रही है. नितिन राऊत बोले कि जलसंपदा मंत्री से पानी मुहैया कराने को लेकर बात की गई है, जिससे हाइड्रो की बिजली मुहैया कराई जा सके. वहीं कोयना डैम में 17 टीएमसी पानी बचा हुआ है, प्रतिदिन 1 टीएमसी (थाउजेंड मिलियन क्यूबिक) पानी, बिजली बनाने के लिए लगता है. जलसंपदा मंत्री ने कहा कि पानी और ज्यादा उपलब्ध कराने की बात की जा रही है, जिससे बिजली यहां पर पानी से बनाई जा सके.
उन्होंने ये भी कहा कि राज्य सरकार को लोडशेडिंग से मुक्त कराना है तो कोयले की जरूरत है. इसके साथ ही पानी की आवश्यकता है ,गैस की आवश्यकता है, एपीएम गैस की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार (Central Government) से कॉन्ट्रैक्ट जो हुआ है उसके तहत केंद्र सरकार को एपीएम गैस राज्य सरकार को मुहैया कराना चाहिए, लेकिन केंद्र सरकार वह भी नहीं दे रही रही है. महाराष्ट्र के मंत्री ने कहा कि लोडशेडिंग से महाराष्ट्र को आज़ाद कराना है तो यह सब हमें मुहैया करना पड़ेगा. महाराष्ट्र सरकार को कोयले के लिए केंद्र सरकार को 2200 करोड़ देना है. केंद्र ने कहा है कि पहले आप पैसे दीजिए उसके बाद हम कोयला देंगे.
मीडिया खबर के मुताबिक, भारत में गर्मी की शुरुआत होते ही देश के बिजली संयंत्रों में कोयले का भंडार 9 साल के निचले स्तर पर पहुंच गया है. कोयले के भंडार में कमी के पीछे कोरोना पाबंदियों में ढील के बाद औद्योगिक गतिविधियों में तेजी आने के बाद बिजली की खपत में बेतहाशा बढ़ोतरी है. हालांकि, सरकारी आंकड़ों में यह दावा भी किया गया है कि बिजली उत्पादन संयंत्रों को कोयले की आपूर्ति वित्त वर्ष 2021-22 में 24.5 फीसदी बढ़कर 6,776.7 लाख टन हो गई. हालांकि, एक दूसरी रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि देश में कोयले की आपूर्ति बढ़ने के बावजूद बढ़ती ऊर्जा मांग के कारण विभिन्न थर्मल पावर प्लांट में ईंधन की कमी रही. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, थर्मल पावर प्लांटों में कोयले की आपूर्ति वित्त वर्ष 2020-21 में 5,440.7 लाख टन थी, जो वित्त वर्ष 2019-20 के 5,672.5 लाख टन से कम है. हालांकि, सरकारी आंकड़ों में यह दावा भी किया जा रहा है कि बिजली क्षेत्र को कोयले की आपूर्ति पिछले महीने बढ़कर 653.6 लाख टन हो गई. वित्त वर्ष 2020-21 की इसी अवधि में यह 579.7 लाख टन थी. कोयले की कुल आपूर्ति भी वित्त वर्ष 2021-22 में बढ़कर 8,181.4 लाख टन हो गई, जो वित्त वर्ष 2020-21 में 6,913.9 लाख टन थी.
किन-किन राज्यों में गहराया बिजली संकट
इससे पहले मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि देश के करीब 10 राज्य कोयला संकट का सामना कर रहे हैं. रिपोर्ट्स में कहा गया था कि उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और तेलंगाना को कोयले की कमी का सामना करना पड़ रहा है. इतना ही नहीं यह भी बताया जा रहा है कि झारखंड, बिहार, हरियाणा और उत्तराखंड में मांग के मुकाबले कम बिजली उपलब्ध हो पा रही है. यूपी में भी 21 से 22 हजार मेगावाट बिजली की मांग है. जबकि 19 से 20 हजार मेगावाट बिजली ही मिल पा रही है. वहीं, केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने मीडिया को बताया कि आंध्र प्रदेश, राजस्थान और तमिलनाडु में बिजली की कमी हुई है. तमिलनाडु के ज्यादातर प्लांट आयातित कोयले पर निर्भर हैं और आंध्र प्रदेश का भी यही हाल है. इसके साथ ही, रेलवे के द्वारा वहां कोयला पहुंचाने में देर हो रही है. उन्होंने कहा कि इस साल जितनी तेज़ी से मांग बढ़ी है, उतनी तेज़ी से पहले कभी नहीं बढ़ी और हमारा कोयले का रिज़र्व कम है. कोयले का रिजर्व आज 9 दिन का है, जबकि पहले 14 दिन का रहता था.
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