जीवन का सबसे और अहम क्रिया है खाना खाना, हम रोज तरह-तरह के पकवान और स्वाद का आनंद लेते हैं। लेकिन अगर हम खाना ही न खाए पाए तो क्या होगा. उम्र 19 साल हो चुकी हो और इस उम्र तक अनाज का स्वाद न चखा हो। आखिर कैसे जिंदा रहा अब तक? यह कहानी है दुमका के 19 साल के रहमूल अंसारी की, इसने जन्म से अब तक अनाज का स्वाद का आनंद नहीं लिया है । अब तक केवल लिक्विड डाइट के भरोसा जिंदगी बीत रहा था। ऐसा इसलिए था क्योंकि रहमूल ऐसी जन्मजात बीमारी की चपेट में था कि जन्म के बाद से ही उसका मुंह ही नही खुल रहा था। उसे टेम्पोरोमेंडीबुलर जॉइंट ऐंकलोसिस (जन्म से मुंह का नहीं खुलना) बीमारी थी.
पांच घंटे की सर्जरी ने दिलायी नयी जिंदगी
टेम्पोरोमेंडीबुलर जॉइंट ऐंकलोसिस की कारण से 19सालों से रहमूल सिर्फ पेय पदार्थ के सहारे ही जीवत है। रांची के हेल्थ प्वाइंट हॉस्पिटल में मैक्सिलोफेशियल सर्जन डॉ अनुज कुमार और उनकी टीम ने रहमूल को इस समस्या से हमेशा के लिए निजात दिला दिया। 5 घंटे की जटिल सर्जरी चली। खोपड़ी में सटे जबड़े को दोनों ओर से अलग किया गया। जटिल सर्जरी के बाद वह बिल्कुल ठीक है। मुंह भी आसानी से खोल पा रहा है। उसने 19 साल बाद भोजना का स्वाद शनिवार को चखा।
नीचे का जबड़ा खोपड़ी की हड्डी से था जुड़ा
डॉ अनुज कुमार के अनुसार, मरीज के नीचे का जबड़ा दोनों तरफ उसके खोपड़ी की हड्डी से जुड़ा हुआ था। करीब 5 घंटे तक चले इस ऑपरेशन में नीचे के जबड़े को दोनों तरफ की खोपड़ी की हड्डी से अलग किया गया। उसके बाद चेहरे की विकृति को भी ठीक किया गया। अब मरीज पुरी तरह से स्वस्थ है। वहीं, एनेस्थीसिया के डॉ ओम प्रकाश श्रीवास्तव ने कहा कि मरीज के लिए विशेष तौर पर फाइबर ऑप्टिक लैरिंगोस्कोप मंगवा कर मरीज को एनेस्थीसिया दिया गया। तब जाकर ऑपरेशन संभव हो सका। ऑपरेशन टीम में डॉ अनुज कुमार के अलावा डॉ ओपी श्रीवास्तव। डॉ राजेश रौशन और अस्पताल की टीम शामिल थे.
इधर, रहमूल के पिता ने बताया कि जन्मजात बीमारी का पता चलने के बाद से लगातार अस्पताल के चक्कर लगा लगाकर परेशान हो चुका था। बीमारी की गंभीरता के कारण कई चिकित्सकों ने भी अपने हाथ खड़े कर दिए थे। ऐसे में रांची के युवा चिकित्सक मैक्सिलोफेशियल सर्जन डॉ अनुज की टीम ने इस गंभीर बीमारी का इलाज शुरू किया। इधर, डॉ अनुज ने कहा कि इलाज में कुल डेढ़ लाख रुपए का खर्च आया। जिसमें एक लाख परिजनों ने जुटाए, जबकि 50 हजार की आर्थिक मदद हम चिकित्सकों ने ही मिलकर की। डॉ. अनुज के अनुसार, महानगरों में इस बीमारी के इलाज का खर्च 3 से 4 लाख के करीब होता।
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