Jharkhand News: नेशनल हाईवे (NH) पर होने वाली हादसा में घायलों को गोल्डन आवर (शुरुआती एक घंटे) में बेहतर उपचार नहीं मिलने से सबसे अधिक मौतें होती हैं. केन्द्र की सड़क परिवहन मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक NH पर होने वाली दुर्घटना में सबसे अधिक मौतों के मामले में झारखंड चौथे स्थान पर है. राज्य में औसतन 100 जख्मी में 74 की मौत हो जाती है. इस आंकड़े को कम करने के लिए झारखंड सरकार ने दुर्घटना संभावित क्षेत्रों में 30 ट्राॅमा सेंटर बनाने की योजना बनाई है. प्रथम फेज में 24 सेंटर बनेंगे.
दरअसल, झारखंड रूलर हेल्थ मिशन सोसाइटी (Jharkhand Ruler Health Mission Society) ने ट्राॅमा सेंटर के सेटअप, ऑपरेशन व मेंटनेंस के लिए निजी कंपनी या संस्थाओं से प्रस्ताव मांगा है. 15 फरवरी को टेक्निकल बिड खुलेगी. अगले 3 माह में ट्राॅमा केयर सेंटर खोले जाएंगे. सेंटर में जख्मियों के लिए एक्सपर्ट डॉक्टर, आईसीयू, वेंटिलेटर, लैब सहित अन्य आधुनिक सुविधाएं मौजूद रहेंगीं.
हालाकिं, झारखंड सरकार के आंकड़े के मुताबिक राज्य में करीब 240 दुर्घटना संभावित क्षेत्र हैं. इनमें 150 खतरनाक हैं. यहां सबसे अधिक मौतें होती हैं. इन स्थानों पर दुर्घटना होने पर घायल को तत्काल इलाज की सुविधा नहीं मिलती है. रिम्स के ट्रामा सेंटर में रेफर किया जाता है। कई बार हॉस्पिटल पहुंचने से पहले ही मरीज दम तोड़ देता है. इसलिए मुख्य सचिव सुखदेव सिंह (Chief Secretary Sukhdev Singh) ने पिछले माह हुई सड़क सुरक्षा की बैठक में ट्रामा केयर सेंटर जल्द खोलने का निर्देश दिया था.
आपको बता दें की, ट्राॅमा केयर सेंटरों में इमरजेंसी, लैब, ईसीजी, प्लास्टर रूम, एक्स-रे, सिटी स्कैन, सोनोग्राफी, ओटी रूम, बच्चों का आईसीयू, माइक्रो बायाेलॉजी और ब्लड बैंक की सुविधाएं होगी. इसके अलावा इन सेंटरों पर 24 घंटे सर्जरी, एनेस्थेसिया, जनरल फिजीशियन, हड्डी रोग, स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर, नर्स और टेक्नीशियन सेवा देंगे.
वहीं, सड़क हादसा के बाद शुरुआती एक घंटा काफी अहम होता है. इस गोल्डन आवर (Golden Hour) में जख्मी को क्रिटिकल केयर मिल जाए तो मौत का आंकड़ा काफी कम हो जाता है. ट्रामा केयर सेंटर में डॉक्टर-आईसीयू उपलब्ध हो तो काफी लोगों की जान बचाई जा सकती है. लेकिन, सिर्फ ट्राॅमा सेंटर की बिल्डिंग बनाकर छोड़ने से कोई फायदा नहीं होगा.
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