Jharkhand: 1600 करोड़ का कोयला लेकर बेधड़क दर्जनों थाना और चेकपोस्ट पार कर गए चोर !

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Jharkhand News: झारखंड के धनबाद जिला से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। यहां कोयले की कालाबाजारी बेधड़क की जा रही है. सोच और प्लानिंग के तहत शातिर कोयले की चोरी को अंजाम दे रहे हैं. ये सब होते हुए देख पुलिस और प्रशासन भी एक्शन नहीं ले रही है। दरअसल आज कल GST के नाम पर कोयले की चोरी की जा रही है. शेल कंपनी (फर्जी कंपनी) बनाकर अरबों रुपये के चोरी के कोयले की खरीद-बिक्री की जा रही है. राज्यकर विभाग ने ऐसी 45 फर्जी (शेल) कंपनियों का खुलासा किया है।

रिपोर्ट्स के अनुसार इन 45 शेल कंपनियों ने लगभग डेढ़ साल में अरबों का कोयला अवैध तरीके से बेच दिया है. पिछले डेढ़ सालों में 80 हजार 895 ट्रक चोरी का कोयला शहर से बाहर निकल गया। हैरानी की बात ये है कि ये ट्रक रास्ते में पड़ने वाले दर्जनों थाना व चेक पोस्ट को पार करते हुए शहर से बाहर निकल गए. अब सवाल ये उठता है कि जब ये ट्रक पार हो रहे छे तब क्यों किसी ने ना तो रोका और ना हीं कागजों की जांच करने की कोशिश की। जबकि नियम कहता है कि सरकार की एजेंसी राज्यकर, जीएसटी सेंट्रल, खनन विभाग, डीटीओ व पुलिस 24 घंटे जांच में लगी रहती है। आंकड़ों की माने तो इन 18 महिनों में 16 अरब, 6 करोड़, 88 लाख, 5 हजार, 4 सौ 8 (16068805408 करोड़) रुपये का चोरी का कोयला बेच दिया गया। इससे सरकार को एक अरब, 61 करोड़, 19 लाख (161.19 करोड़) रुपये टैक्स का चूना लगा।

प्राप्त जानकारी के अनुसार शेल कंपनियां बनाने वाले किसी गरीब को अपना निशाना बनाते हैं उनको पैसों का लालच देकर उनसे उनका आधार कार्ड और बिजली बिल ले लेते हैं. फिर उसी के आधार पर रेंट एग्रीमेंट का कागजात तैयार करते हैं। पेन नंबर उसके नाम से बनाया जाता है. उस व्यक्ति के नाम पर फर्जी कंपनी के नाम से ऑनलाइन निबंधन कराया जाता है। इन कंपनियों से एक माह में करोड़ों का ई-वेबिल जनरेट किया जाता है. ई-वेबिल (परमिट) के माध्यम से 2 नंबर के कोयले को दूसरे राज्यों में भेजा जाता है।

वहीं, नियम कहता है कि किसी भी कंपनी को महिने की 10 तारीख को जीएसटीआर-1 भरना होता है, फिर माह के 20 तारीख को जीएसटीआर-3 बी रिटर्न दाखिल करना होता है. लेकिन ऐसी फर्जी कंपनियां यह नहीं भरती हैं. जब तक जांच शुरू होती है, तब तक फर्जी कंपनियां करोड़ों का ई-वेबिल निकालकर चोरी का कोयला दूसरे राज्यों में भेज देती हैं। जांच के बाद ना तो कंपनी मिलती है और ना ही कंपनी के बिजनेस सेंटर के पते का कुछ सत्यापन होता है और सबकुछ बस कागजों में रह जाता है।

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